कैदी
बस दो चार रोज की बात है !
या दो और चार रोज़ की बात है !
क्या ये समज़ना बोहोत खास है !
मैं छोड़ दूं तो क्या कोई आस पास है !
क्यों रखते हो वहां
जहा फालतू की बकवास है !
मै बेजान हु जहाँ तुम सोच रहे हो !
न पक्षी न कोई कहानी मेरे पास है !
रात के अंधेरे दिन के उजालो में है !
न कोई खुशबू इन सेहराओं में है !
ये बेजान है तरकस में तीर
फिर भी पता नहीं किस गुमान में है !
राख ले बे ये चिराग तेरे पास
अब ये उजाला मेरी कश्ती में है
तय करेंगे खुद अपनी हस्ती
याद रहे इस वक्त तू मेरे बस्ते में है !
-ATM